मुगल साम्राज्य का इतिहास के बारे में हम आप को बताते है जैसे मुग़ल वंश 1526-1707-मुhttp://मुग़ल वंशग़ल वंश की उत्पति लेटिन भाषा के MONG शब्द से हुई है जिसका अर्थ बहादुर होता है मुग़ल मुगलो एबं तुर्की वंश के मिश्रण से हुआ हे माता की और से मुग़ल मगोल बाली चंगेज खांसे सम्बन्ध रखते थे तथा पिता की ओर से मुग़ल तुर्क शासक थे तैमूर खां के वंश थे मुगलो ने स्वंय तैमूर का वंशी माना है

ज़हीरुद्दीन मोहम्मद बाबर(1526-30)
भारत पर मुगल साम्राज्य का इतिहास ज़हीरुद्दीन मोहम्मद बाबर 14 फ़रवरी 1483 को अन्दिजान में पैदा हुए थे, जो फ़िलहाल उज़्बेकिस्तान का हिस्सा है ज़हीरुद्दीन मुहम्मद उर्फ बाबर मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक और प्रथम शासक था। इनका जन्म मध्य एशिया के वर्तमान उज़्बेकिस्तान में हुआ था। यह तैमूर और चंगेज़ ख़ान का वंशज था। मुबईयान नामक पद्य शैली का जन्मदाता बाबर को ही माना जाता है। 1504 ई॰ में काबुल तथा 1507 ई॰ में कन्धार को जीता तथा बादशाह की उपाधि धारण की बाबर पिता की और तैमूर का 5 वा वंशज तथा माता की और से चंगेज खां(मगोल वंश )१४ वा वंशज था1494 ई० में बाबर का पिता एक छज्जे पर खड़ा होकर कबूतर उडा रहा था और अचानक से छज्जा टूट जाने से उसकी मौत हो गयी :अंत इस कारण बाबर 12 बर्ष की उम्र राजगद्दी पर बैठा।1496 ई० में बाबर ने समरकंद पर आक्रमण परतुं असफल रहा। तथा 1947 ई० में दूसरी बार समरकंद पर आक्रमण करके 100 दिन तक अपने अधिकार में रखा। लेकिन परगना में विद्रोह होने के बाद उसने परगना ब समरकंद दोनों को खो दिया
सर-ए-पूल का युद्ध (1502 )-
यह युद्ध 1502 ई० में उज्बेक शासक शैबानी खां व बाबर के बीच हुआ था अजबेको ने तुलगुमा प्रेरित कर के बाबर को बुरी तहर हरया था 1504 ई० में बाबर ने काबुल पर अपना अधिकार किया था।
बाबर के भारत पर आक्रमण
बाबर के भारत पर आक्रमण 1519 1502 ई० में वजोर पर किया था। यह बाबर द्वारा पहला आक्रमण थावजोर के आक्रमण के दौरान बाबर ने सर्बप्रथम बारूद व तोपखाने का प्रयोग किया गया

पानीपत का प्रथम युद्ध (21अप्रैल1526)इब्राहिम लोदी व बाबर के बीच हुआ था
भारत पर मुगल साम्राज्य का इतिहास लाहौर के सूबेदार दौलत खां लोदी व मेवाड़ के शासक संग्राम सिंह ने बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया गया था। बाबर ने इस युद्ध में पहली बार तुलगुमा का प्रयोग किया गया था इस युद्ध में बाबर ने तोपों को सजाने का काम किया थाउस्मानी प्रद्धति-दो गाड़ियों के बिच की तोफ रखना। पानीपत के प्रथम युद्ध के बाद बाबर कलन्दर उपधि धारण की थी बाबर ने तुलगमा प्रद्धति-उज्बेको से सीखी थी
खानवा का युद्ध (1527ई० )
यह युद्ध बाबर व मेवाड़ के शासक राणा सांगा के मध्य लड़ा गया था। इस युद्ध में राणा व सांगा का सहयोग चंदेरी के शासक मेदनीराय ने किया था इस युद्ध में भी बाबर की जीत हासिल की। खानवा के युद्ध के दौरान ही बाबर ने जिहाद का नारा दिया था इस युद्ध के बाद बाबर ने गाजी की उपादि धारण की थी।
चंदेरी का युद्ध (1528 )-
यह युद्ध बाबर व चंदेरी के शासक मेदिनिराय के बिच हुआ था इस युद्ध में मेदिनिराय की हार हुई।
बाबर की मृत्यु –
बाबर की मृत्यु 26 DEC 1530 ई० में आगरा में हुई। बाबर को अपरामबाग में दफनाया गया था किन्तु बाद में काबुल में दफनाया गया था अतः बाबर का मकबरा काबुल में है बाबर ने तुजुक -ए बाबरी (बाबरनाम)नामक आत्मकथा तुर्की भाषा में लिखी। बाबरनामा का फारसी में अनुबाद अकबर के काल में अब्दुल रहीम खानारवाना ने किया था बाबर ने काबुल में शाहरुख़ एवं कंधार में बाबरी नामक सिक्के चलाये। बाबर ने सुल्तान की परम्परा को तोड़ एवं स्वयं को बादशाह घोषित किया। बाबर ने मुबईंयान नामक पगसेली का विकाश किया था। बाबर का सेनापति मीर अब्दुल बाकि ने उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले में आयोध्या नामक स्थान पर बाबरी मस्जिद का निर्माण करया था

नासिरुददीन मुहम्मद हुमायुँ(1530 -1556 )_
बाबर के चार पुत्र थे (1 )हुमायुँ_दिल्ली व आगरा का गर्वनर (2 )कामरान_ काबुल व कंधार का गर्वनर(3 )अस्कनी _संभल का गर्वनर (4 )हिदाल_अलवर का गर्वनर हुमायुँ का जन्म 6 मार्च 1508 ई० को काबुल के किले में हुआ था। हुमायुँ का राज्यभिषेक आगरा में हुआ था। हुमायुँ का पहला शासन काल _1530 _1540 हुमायुँ का दूसरा शासन काल_1555 _1556 हुमायुँ ने बाबर की वसीयत अनुसा बाबर के साम्राज्य को अपने भाईयो में बाटा था।
हुमायुँ द्वारा लडे गये युद्ध _
कालिजंर अभियान_1531 ई० यह हुमायुँ का प्रथम सैनिक अभियान था कालिंजर का शासक प्रताप रुद्रदेव था। यह अभियान असफल रहा।
चुनार पर घेरा _1532 ई०
1532 ई०में हुमायुँ ने चुनार पर घेरा डाला। इस समय चुनार पर शेरशाह सूरी का अधिकार था। अतः हुमायुँ व शेरशाह सूरी के बीच संधि हो गयी। शेरशाह ने हुमायुँ की अधीनता स्वाकीर कर ली तथा अपने पुत्र क़ुतुब खां को 500 सैन्य टुकड़ी के साथ हुमायुँ के सेवा में भेज दिया।
चौसा का युद्ध _1539 ई०
यह युद्ध अफगान शासक शेरशाह सूरी (शेरखां)एवं हुमायुँ के बीच हुआ था इस में हुमायुँ की पराजय हुई। इस युद्ध के बाद शेरखां शेरशाह की अपाधि धारण की थी। हुमायुँ अपनी जान बाचने के लिए गंगा में घोड़े सहित कूद गया था। जिसे डूबने से निजाम नमक भिरती ने बचाया था। हुमायुँ ने इस अपकार के बदले भिरती को एक दिन का बादशाह बनाया था। निजाम भिरती ने अपनी स्मर्ति में चमड़े के सिक्के जारी किये थे।